कोरोनाक लॉकडाउनमे ‘सूर्यमुखी’क फुलायब

किछुए दिन पहिने मैथिली लिटरेचर फ़ेस्टीवल-2019मे आरसी प्रसाद सिंह जीक ‘सूर्यमुखी’ पुस्तकपर नजरि पड़ल । मैथिली अकादमी, पटना स’ 1981 ई.मे प्रकाशित एहि काव्य कृति केँ खरीद खुशी खुशी घर अनने रही । एहि बीच एक दू बेर पढ़बा लेल नियार कयबो कयलहुँ, मुदा लागल, जे एहि कृति के हड़बड़ीमे नहि पढ़ल जा सकैत अछि, तेँ पुस्तक कतेको महीना स’ टेबलपर रखले छल । एहि कोरोनाक लॉकडाउन नीक जेना घर बैसा देलक । जखन सौंसे दुनिया त्राहिमाम क’ रहल अछि तेहना समयमे सूर्यमुखीक फुलायब हृदयक आँखिके कतेक शीतलता प्रदान करतइ से ओ लोकन्हि अवश्य जनताह, जे सूर्यमुखीक फुलायल थोंकाके काहियो नीक स’ निहारने हेताह ।

कविवर आरसी प्रसाद सिंह जीक लिखल कथा हिन्दी पाठ्यपुस्तकमे पढ़ने रही, मुदा हिनक काव्यक रसास्वादन सेहो मैथिलीमे पढ़ब हमर पहिल अनुभव छल । एक स’ एक समीक्षक, समालोचक एहि काव्यक विश्लेषण कयने हेताह, मुदा हमर अनुभव रौदायल बटोहीकेँ कागजी नेबो देल सरबत पियब सन अछि ।

पुस्तकक प्रवेशिका सात भागमे बाँटल छैक । जाहिमेँ कवि महोदय स्वयम् लिखइत छथि जे- “हम हिंदीसँ मैथिलीमे आयल छी ।” स्वयम् केँ मैथिलीमे अयबाक लेल बहुत सुंदर कथाक प्रसंग लिखने छथि । एहि लेल हुनका स्व. अमरनाथ झाक ओ भाषण सेहो प्रेरित केलकन्हि जे अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलनक मंचसँ अध्यक्षीय भाषणमे निर्भीकता पूर्वक ओ बाजल छलाह जे ‘मैथिली हमर मातृभाषा अछि आ हिन्दी राष्ट्रभाषा’ ।

पोथीमे कुल 61टा कविता आ 36टा मुक्तक संग्रहित अछि । सन् 1981 ई.मे प्रकाशित एहि पुस्तकमे आरसी प्रसाद सिंह जी, जे किछु लिखलाह अछि, से आजुक समयमे सेहो अक्ष्ररस: ओहिना अछि । अपन रचना मे श्री सिंह लगभग सभ विषय केन्द्रित काव्य रचलथि अछि – जेना प्रकृति, समाज, युवा, देशभक्ति, मातृभूमि मिथिला, नैतिकता, आत्मचिन्तन, जन-जागरण आदि आदि । कविता ‘चेतना-तरंग’मे रंगमंच के केन्द्रित करैत लिखाइट छथि : रंग-मंच पर उतरी गेल नट अनंग । छूबि गेल आइ कोस चेतना-तरंग ? । तहिना जखन ‘सनातन पुरुष’ रचइ छथि त’ बिना क्रिया पद केँ मात्र शब्दक संयोजन स’ सुंदर बिम्ब उभरि जाइत अछि : ग्राम, नगर, पाथ, हमर मनोरथ, कला, सभ्यता, संस्कृति-ग्राहक । आगम, निगम, काव्य, स्मृति, दर्शन, नाटक, नृत्य केर संवाहक । आ जखन प्रकृति लेल शब्द गढ़इ छथि त’ हिनक कलम स’ निकलैत अछि : वर्षा-ऋतु आयल पुनि, नाचि उठल मन-मयूर । धानक नामक उपयोग तेना करैत छथि जे अगल बगल गमागमाय लागत :

आँगन मे हमर सुआपंखी गमकाइत धान । देसक एकता लेल हिनक विचार छन्हि : आइ भारत-भारती सम्पूर्ण, भारतवर्ष – भरिमे, भरी रहल अछि भावना, हम एक छी, हम एक छी । युवा तूरलेल लिखैत छथि : पुरा लै छै अपन प्रण रोपि, क’ जे हठ ठानै छै ! युवा जे क्रांति – जीवी रक्त, की अवरोध मानै छै ! आ यौवन के परिभाषित करबा लेल कहैत छथि : अनंगक अंग, केशक रंग, ने आसंग – दर्शन छै ! मन: स्थिति जे परिस्थिति – मुक्त, तकरे नाम यौवन छै ! युवामे क्रांतिक जोश संग ललकारा दैत – मैथिलीक क्रान्ति – पूत जागी रहल छै ! ‘करू वा मरू’क लगन लागि रहल छै ! जखन मिथिलाक समाज अकाल ग्रस्त छल तखन कविक वेदना सेहो प्रकट होइट छन्हि : मंच पर शोकांत नाटक, अश्रु – विगलित भ’ रहल अछि । के एहन निर्मम विधाता, क्रूर अभिनय क’ रहल अछि ॥

एहि प्रकारे देखल जाय त’ आरसी प्रसाद सिंह जी अपन वर्तमानमे भ’ रहल सम्पूर्ण सामाजिक, राजनीतिक परिवर्तन, घटना – परिघटनाक लेल अपन काव्य रचना केलन्हि अछि ।

हिनक रचना मे मैथिली भाषा आ मिथिलाक ग्राम्य जीवन मे प्रचलित लोकोक्तिक सेहो खूब नीक जेना उपयोग केलथि अछि : लोकोक्तिक प्रयोग हिनक भाषामे आरो बेसी अपनत्वके भिजा देलक अछि । बहुतो लोकोक्तिमे किछू निम्न अछि : 1. सूरदास बुझतै घी तखने, जखन पात पर गड़गड़ेतै तखने, 2. बाड़िक पटुआ तीत, 3. गूड़क मारी जनै छै धोकरे, 4. ऊँच भ’ गेल बांह स’ खत्ता, 5. मोन चंगा, कठौती मे गंगा, 6. आगि लगे पर कूप खुनै-ए, 7. भोजक बेरमे कुम्हर रोपै आदि आदि ।

अपने लोकन्हि स’ सेहो आग्रह जखन समय भेटय त’ आरसी प्रसाद सिंह जीक काव्य कृति सूर्यमुखी अवश्य पढ़ी ।

सूर्यमुखी
रचनाकार : आरसी प्रसाद सिंह
प्रकाशक : मैथिली अकादमी, पटना
तृतीय संस्करण : 2011
मूल्य : 60/- टाका
कुल पृष्ठ : 157

 


– प्रकाश झा

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