महात्मा बुद्ध के नाम पर बलि!

विपिन बादल

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बौद्ध दुनियाभरि मे अहिंसा के अग्रदूत के रूप में पूजित छथि मुदा हुनके जन्मस्थली नेपाल मे हुनकर अनुयायी द्वारा प्रतिवर्ष हजारों पशुबलि देल जाइत अछि। अहि कामना के संग जे भगवान बुद्ध हुनक कल्याण करथिन्ह। यद्यपि पढ़ै-सुनय मे शायद विश्वास नहि हुअ, तथापि ई सोलहो आना सत्य अछि। जानि के अज्गुत लागत जे बुद्ध के जन्मस्थान नेपाल मे बुद्ध जयंती के पावन अवसर पर हजारों साल स परम्परा के नाम पर अनगिनत पशुबलि देल जाइत अछि।
ध्यान देबा योग्य अछि जे गौतम बुद्ध के जन्मस्थली नेपाल बौद्ध धर्मक एक प्रमुख केंद्र अछि। काठमांडू स करीब 10 किमी उत्तर-पश्चिम मे स्थित खड़का भद्रकाली के नौलिन भद्रकाली मंदिर मे बुद्ध पूर्णिमा के दिन हजारों छागर आ मुर्गा के बलि देल जाइत अछि। आश्चर्य अधिक जे अहिठाम बलि चढ़ौनिहार सेहो बौद्धधर्मी नेवार समुदाय के लोक छथि। पीढ़ियो स चलि आबि रहल ई चलन आब परम्परा बनि चुकल अछि। भोरे चारि बजे स शुरु होय बला अहि प्रक्रिया मे दुपहर 12 बजे तक हजारो पशु के बलि पड़ि चुकल रहैत अछि। नौलिन भद्रकाली मंदिर के पुजारी के अनुसार ‘पीढ़ियो स चलैत आबि रहल ई परम्परा हजारो साल पुरान अछि, जाहि के कोनो हालत मे बदलल नहि जा सकैत अछि आ नहिए अहि समुदाय के लोक कोनो बदलाव चाहैत छथि’। हुनक तर्क छन्हि जे बलि प्रदान के ई परम्परा गौतम बुद्ध के जनमो स पहिने स चलैत आबि रहल अछि आ मां चण्डी के आविर्भाव बुद्ध स बहुत पहिने भ चुकल रहैन्ह, तैं नेवार समुदाय के लोक बौद्ध धर्म अपनौला के बादो अपन परम्परा के पालन करैत आबि रहल छथि।
सिर्फ नौलिन खंड के भद्रकाली टा नहि अपितु काठमांडू के चपली भद्रकाली मंदिर आ बनेपा स्थित चंडेश्वरी मंदिर मे सेहो बुद्ध जयंती के अवसर पर हजारो पशुबलि देल जाइत अछि। हिंसा के विरोध कयनिहार आ अहिंसा के मानवता के परम धर्म माननिहार गौतम बुद्ध के जयंती के अवसर पर खड़का भद्रकाली, चपली भद्रकाली आ चंडेश्वरी सहित कतेको मंदिर मे पशुबलि के हजारो साल पुरान परम्परा चलैत आबि रहल अछि। एतेक बेसी संख्या मे पशुबलि देल जाइत अछि जे मंदिर के चबूतरा आ परिसर शोणित स सराबोर भ जाइत अछि। रक्तमय मंदिर प्रांगण के देखि ई सोचनाई स्वाभाविक अछि जे बुद्ध जयंती के अवसर पर बौद्ध अनुयायी द्वारा बलि प्रथा कि महात्मा बुद्ध के आदर्श के हंसी उड़ेनाई नहि अछि?
संस्कृति आ परम्परा के धरोहरि के रूप मे चलि आबि रहल अहि प्रथा मे कोनो बदलाव बुजुर्ग पीढ़ी के स्वीकार नहि छन्हि। हुनक तर्क छन्हि जे नेवार मुख्यतः शाक्त छलाह आ बुद्ध के जन्म के पूर्वहि स अहि समुदाय मे बलि प्रथा प्रचलित छल। बौद्ध धर्म अपनौला के बादो ओ अपन परम्परा के अक्षुण्ण रखलाह आ अहि प्रथा के छोड़नाई ई समुदाय सोचियो नहि सकैत अछि। यद्यपि किछु युवा वर्ग बौद्ध आदर्श के नाम पर बलि प्रथा के औचित्य पर यदा-कदा सवाल उठेबाक चेष्टा करैत रहला, तथापि अधिसंख्य लोक अहि तरहक प्रयास के गंभीरता स नहि लैत छथि। हुनक कहब छन्हि जे विरोध कयनिहार युवा अपन सभ्यता आ सांस्कृतिक धरोहरि के ठीक स नहि बुझि सकलाह अछि।
स्पष्ट अछि जे राजधानी काठमांडू सहित नेपाल के विभिन्न भाग मे स्वयं बौद्ध अनुयायी अपन परम्परा छोड़बाक बात नहि सोचि सकैत छथि, भले ही ई हुनक धर्म के आदर्श आ मूल सिद्धांत के विपरीत कियेक नहि हो। यैह कारण अछि जे बुद्ध जयंती के अवसरो पर ओ संस्कार स अपन परम्परा के समक्ष सदैव नत-मस्तक रहबाक अभ्यस्त भ’ चुकल छथि।

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